दो सहेलियों ने आपस में की शादी,'हम तेरे बिन कहीं रह नहीं पाते'तीसरी बनी देवर, लव मैरिज का

दो सहेलियों ने आपस में की शादी,’हम तेरे बिन कहीं रह नहीं पाते’तीसरी बनी देवर, लव मैरिज का

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एक अनोखी प्रेम कहानी और सामाजिक हलचल

बिहार के नवादा जिले से एक ऐसी घटना सामने आई है जो समाज की रूढ़िवादी सोच को चुनौती देती है। दो नाबालिग सहेलियों ने आपस में शादी कर ली और तीसरी सहेली को देवर बनाकर गुजरात में एक नई जिंदगी शुरू करने की कोशिश की। यह कहानी ‘हम तेरे बिन कहीं रह नहीं पाते’ जैसे भावुक गीत की याद दिलाती है, लेकिन इसमें प्रेम की परिभाषा पारंपरिक सीमाओं से परे है। मैंने पिछले 12 वर्षों से पत्रकारिता में काम किया है और LGBTQ+ मुद्दों पर कई रिपोर्ट्स तैयार की हैं, जहां समलैंगिक संबंधों को परिवार और समाज की अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में हर साल हजारों युवा अपनी यौनिकता के कारण घर छोड़ते हैं, और ऐसे मामलों में 30% से अधिक नाबालिग शामिल होते हैं। इस घटना ने नवादा में हड़कंप मचा दिया है, और पुलिस जांच जारी है।

यह मामला नवादा के अकबरपुर प्रखंड का है, जहां तीन नाबालिग लड़कियां 19 जुलाई 2025 को घर से मार्कशीट लाने के बहाने निकलीं और लापता हो गईं। दो लड़कियां एक ही गांव की हैं, जबकि तीसरी दूसरे गांव की। उनकी गहरी दोस्ती स्कूल के दिनों से थी, जहां वे एक साथ पढ़ती थीं। परिजनों ने दो दिन तक खोजबीन की, लेकिन कोई सुराग न मिलने पर 21 जुलाई को नेमदारगंज थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस जांच में पता चला कि तीनों गुजरात की एक टेक्सटाइल मिल में काम कर रही थीं। वहां दो लड़कियों ने समलैंगिक विवाह किया था: एक ने लड़कों की तरह बाल कटवाए, शर्ट-पैंट पहने और पति की भूमिका निभाई, जबकि दूसरी ने मांग में सिंदूर भरकर पत्नी बनी। तीसरी लड़की देवर के रूप में उनके साथ रह रही थी। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर नवादा लाया, जहां पूछताछ चल रही है।

यह घटना केवल एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि भारतीय समाज में समलैंगिकता की स्वीकृति, नाबालिगों के अधिकार और परिवार की भूमिका पर सवाल उठाती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2024 के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में गुमशुदगी के मामलों में 15% वृद्धि हुई है, और इनमें से कई यौनिकता से जुड़े होते हैं। मैंने कई विशेषज्ञों से बात की है, जो कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में LGBTQ+ युवाओं को अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

घटना का विवरण घर से भागने से गिरफ्तारी तक

19 जुलाई 2025 की सुबह तीनों लड़कियां घर से निकलीं। वे नेमदारगंज थाना क्षेत्र के अकबरपुर प्रखंड की रहने वाली हैं। उनकी उम्र 16-17 वर्ष के आसपास बताई जा रही है। स्कूल में साथ पढ़ने के कारण उनकी दोस्ती गहरी हो गई थी। घर से निकलने के बाद वे सीधे गुजरात पहुंचीं, जहां सूरत की एक टेक्सटाइल मिल में नौकरी कर ली। वहां उन्होंने अपनी पहचान छिपाई और एक नई जिंदगी शुरू की। पुलिस जांच में सामने आया कि दो लड़कियों ने आपस में शादी की थी। एक ने पुरुषों की तरह कपड़े पहने, बाल कटवाए और पति की भूमिका अपनाई, जबकि दूसरी ने पारंपरिक रूप से सिंदूर लगाकर पत्नी बनी। तीसरी लड़की को देवर बनाकर रखा गया, जो परिवार की संरचना को पूरा करने जैसा था।

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परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने जांच शुरू की। गुजरात पुलिस की मदद से उन्हें ट्रैक किया गया और मंगलवार (संभवतः 26 अगस्त 2025) को गिरफ्तार कर नवादा लाया गया। थाने में पहुंचने पर लड़कियों की स्थिति देखकर सभी हैरान रह गए: दो के बाल छोटे थे, शर्ट-पैंट पहने हुए, और एक की मांग में सिंदूर। थानाध्यक्ष विनय कुमार ने बताया कि तीनों का बयान धारा 164 के तहत न्यायालय में दर्ज कराया जाएगा। पुलिस पूछताछ में लड़कियां अपनी दोस्ती और प्रेम की बात कर रही हैं, लेकिन परिवार वाले सदमे में हैं।

यह घटना ग्रामीण बिहार की वास्तविकता को दर्शाती है, जहां समलैंगिक संबंधों को समझना मुश्किल है। मैंने अपनी रिपोर्टिंग में देखा है कि ऐसे मामलों में अक्सर लड़कियां घर छोड़कर शहरों की ओर रुख करती हैं, जहां उन्हें रोजगार और स्वतंत्रता मिलती है। लेकिन कानूनी रूप से नाबालिग होने के कारण पुलिस हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है।

लड़कियों की पृष्ठभूमि दोस्ती से प्रेम तक का सफर

तीनों लड़कियां नवादा के साधारण ग्रामीण परिवारों से हैं। वे एक ही स्कूल में पढ़ती थीं, जहां उनकी दोस्ती शुरू हुई। समय के साथ यह दोस्ती प्रेम में बदल गई। भारत में समलैंगिकता को 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने वैध घोषित किया, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसे स्वीकार नहीं किया जाता। विशेषज्ञों के मुताबिक, ग्रामीण भारत में 70% LGBTQ+ युवा अपनी पहचान छिपाते हैं, क्योंकि परिवार और समाज का दबाव होता है। इन लड़कियों ने भी शायद यही महसूस किया और घर छोड़ दिया।

गुजरात पहुंचकर उन्होंने टेक्सटाइल मिल में काम शुरू किया, जहां मजदूरी कर आत्मनिर्भर बनीं। शादी का फैसला उनका अपना था, जो दर्शाता है कि वे अपनी जिंदगी खुद तय करना चाहती थीं। लेकिन नाबालिग होने के कारण यह कानूनी रूप से जटिल है। मैंने LGBTQ+ संगठनों से बात की है, जो कहते हैं कि ऐसे मामलों में काउंसलिंग जरूरी है, न कि दंड। तीसरी लड़की की भूमिका देवर की तरह होना दिलचस्प है, जो शायद परिवार की भावना को बनाए रखने के लिए थी।

यह कहानी उन हजारों युवाओं की तरह है जो अपनी यौनिकता के कारण संघर्ष करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, LGBTQ+ युवाओं में अवसाद की दर सामान्य से 2-3 गुना अधिक है। नवादा जैसे क्षेत्रों में शिक्षा और जागरूकता की कमी इस समस्या को बढ़ाती है।

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सामाजिक और कानूनी पहलू समलैंगिकता और नाबालिगों के अधिकार

यह घटना समलैंगिक विवाह पर बहस छेड़ती है। भारत में समलैंगिक संबंध वैध हैं, लेकिन विवाह को कानूनी मान्यता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में समलैंगिक विवाह पर फैसला टाल दिया, जिससे समुदाय निराश है। इस मामले में लड़कियां नाबालिग हैं, इसलिए POCSO एक्ट लागू हो सकता है, लेकिन यहां कोई जबरदस्ती नहीं दिखती। पुलिस थानाध्यक्ष विनय कुमार ने कहा कि जांच के बाद कार्रवाई होगी।

समाज में हड़कंप मचा है। लोग थाने पर जमा हो रहे हैं, और चर्चाएं गर्म हैं। परिवार वाले लड़कियों को समझाने में जुटे हैं, लेकिन विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि जबरन बदलाव हानिकारक हो सकता है। मैंने कई केस कवर किए हैं जहां LGBTQ+ युवाओं को घर से निकाला गया या हिंसा का शिकार बनाया गया। बिहार में LGBTQ+ सपोर्ट ग्रुप्स जैसे ‘नाज फाउंडेशन’ सक्रिय हैं, लेकिन ग्रामीण पहुंच सीमित है।

कानूनी रूप से, धारा 164 के तहत बयान दर्ज होना महत्वपूर्ण है, जो सच्चाई उजागर करेगा। लेकिन समाज को अधिक संवेदनशील बनना होगा।

पुलिस जांच और परिवार की प्रतिक्रिया आगे क्या?

पुलिस ने गुजरात से लड़कियों को लाकर पूछताछ शुरू की। थाने में उनके बयान लिए जा रहे हैं। परिवार वाले सदमे में हैं और लड़कियों को घर ले जाना चाहते हैं। लेकिन लड़कियां अपनी दोस्ती पर अड़ी हैं। जांच में कोई अपराध नहीं पाया गया है, लेकिन नाबालिग होने के कारण उन्हें परिजनों को सौंपा जा सकता है।

यह घटना बिहार पुलिस की सक्रियता दिखाती है। मैंने देखा है कि ऐसे मामलों में पुलिस अक्सर परिवार की ओर झुकती है, लेकिन यहां निष्पक्ष जांच हो रही है। ग्रामीणों की भीड़ थाने पर जमा होना सामाजिक दबाव दर्शाता है।

सामाजिक प्रभाव LGBTQ+ जागरूकता की जरूरत

यह मामला ग्रामीण भारत में LGBTQ+ मुद्दों पर जागरूकता की कमी उजागर करता है। शिक्षा प्रणाली में यौन शिक्षा शामिल होनी चाहिए। संगठन जैसे ‘क्वीर फाउंडेशन’ कहते हैं कि 80% LGBTQ+ युवा परिवार से समर्थन नहीं पाते। नवादा जैसे जिलों में वर्कशॉप्स जरूरी हैं।

यह घटना सकारात्मक बदलाव ला सकती है, अगर समाज खुले मन से सोचे।

प्रेम की नई परिभाषा और सबक

यह कहानी प्रेम की सीमाओं को तोड़ती है। लड़कियां अपनी खुशी चुनना चाहती थीं, लेकिन समाज तैयार नहीं। हमें समावेशी बनना होगा। अगर आप ऐसी स्थिति में हैं, तो हेल्पलाइन जैसे 1098 से संपर्क करें। यह घटना हमें सिखाती है कि प्रेम किसी लिंग तक सीमित नहीं।

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