
अभय चौटाला के फार्महाउस में ठहरेंगे जगदीप धनखड़।
भारतीय राजनीति में अक्सर ऐसे मोड़ आते हैं जो पूरे सिस्टम को हिला देते हैं। हाल ही में, पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने ऐसा ही एक तूफान खड़ा कर दिया है। 21 जुलाई 2025 को, मानसून सत्र के पहले दिन राज्यसभा की अध्यक्षता करने के बाद, उन्होंने अचानक स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर अपना पद छोड़ दिया। लेकिन यह इस्तीफा इतना सरल नहीं लगता। इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के प्रमुख अभय सिंह चौटाला ने इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की साजिश करार दिया है। अब, धनखड़ ने उपराष्ट्रपति आवास खाली करने के बाद अभय चौटाला के दिल्ली स्थित छतरपुर एन्क्लेव के फार्महाउस में रहने का फैसला किया है। यह फैसला न केवल उनके पुराने राजनीतिक संबंधों को उजागर करता है, बल्कि भाजपा की जाट राजनीति पर भी सवाल उठाता है।
इस लेख में हम इस घटना की गहराई में उतरेंगे, धनखड़ के राजनीतिक सफर, चौटाला परिवार से उनके रिश्तों, किसान मुद्दों पर उनके रुख और इस इस्तीफे के राजनीतिक प्रभावों पर चर्चा करेंगे।
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे का मुख्य कारण
जगदीप धनखड़ का राजनीतिक करियर हमेशा से विवादों और साहसिक फैसलों से भरा रहा है। राजस्थान के जाट समुदाय से आने वाले धनखड़ ने वकालत से राजनीति में कदम रखा। 1989 में, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल ने उन्हें जनता दल की टिकट पर झुंझुनू से लोकसभा चुनाव लड़वाया और वे जीते भी। देवी लाल उनके मेंटर बने, जिन्होंने उन्हें ‘प्लीडर’ से ‘लीडर’ बनने की सलाह दी। धनखड़ ने केंद्रीय मंत्री के रूप में भी काम किया, लेकिन हमेशा किसानों के मुद्दों पर मुखर रहे।
2022 में उपराष्ट्रपति बनने के बाद, उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष के साथ कई टकराव झेले। लेकिन उनका इस्तीफा अप्रत्याशित था। उन्होंने पत्र में स्वास्थ्य कारण बताए, लेकिन कई लोगों को यह बहाना लगा। अभय चौटाला ने इसे ‘साजिश’ कहा, दावा किया कि धनखड़ किसानों की भलाई के लिए बोलते थे, जो भाजपा को पसंद नहीं आया। एक कार्यक्रम में धनखड़ ने किसानों को दिए गए वादों पर सवाल उठाए थे, जो मोदी सरकार के लिए असुविधाजनक था।
अमित शाह ने साक्षात्कार में कहा कि इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से है और इसमें ज्यादा खींचतान नहीं करनी चाहिए। लेकिन विपक्ष, जैसे कांग्रेस के जयराम रमेश, ने इसे रहस्यमयी बताया। धनखड़ के इस्तीफे के बाद वे सार्वजनिक जीवन से गायब हो गए, जिससे ‘हाउस अरेस्ट’ की अफवाहें उड़ीं। शाह ने इन्हें खारिज किया, लेकिन सवाल बने रहे।
जगदीप धनखड़ के चौटाला परिवार से संबंध
धनखड़ और चौटाला परिवार का रिश्ता दशकों पुराना है। देवी लाल ने धनखड़ को राजनीति में लाया, और यह बंधन आज भी मजबूत है। 2024 में ओम प्रकाश चौटाला के निधन पर धनखड़ सबसे पहले पहुंचे और उन्हें श्रद्धांजलि दी। अभय चौटाला ने बताया कि वे बचपन से धनखड़ से मिलते रहे हैं, और वे परिवार के सुख-दुख में शामिल होते हैं।
इस्तीफे के बाद जब धनखड़ को रहने की जगह की जरूरत पड़ी, अभय ने अपना फार्महाउस ऑफर किया। चटारपुर एन्क्लेव का यह फार्महाउस दिल्ली के दक्षिणी हिस्से में है, जहां धनखड़ अब शिफ्ट हो रहे हैं। 1 सितंबर 2025 को, उन्होंने पहली बार आवास से बाहर कदम रखा – एक डेंटिस्ट के पास जाने के लिए। उनकी पत्नी सुदेश धनखड़ पहले ही राजस्थान के अपने गांव कीथाना जा चुकी हैं।
यह फैसला राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। आईएनएलडी हरियाणा में विपक्षी दल है, और भाजपा के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण हैं। धनखड़ का वहां रहना भाजपा के लिए असहज हो सकता है, खासकर हरियाणा चुनावों के मद्देनजर। रणजीत सिंह चौटाला, जो भाजपा से जुड़े हैं, ने भी धनखड़ को परिवार का सदस्य बताया, लेकिन इस्तीफे पर सतर्कता बरतने की सलाह दी।
किसानों के मुद्दे और साजिश के आरोप
धनखड़ हमेशा किसानों के हक में बोले। देवी लाल से सीखी राजनीति में किसान कल्याण प्राथमिकता था। हाल के एक कार्यक्रम में, उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कार्यक्रम में किसानों को दिए वादों पर सवाल उठाए। अभय चौटाला का दावा है कि यही वजह है कि मोदी-शाह ने उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर किया।
जाट समुदाय, जो हरियाणा, राजस्थान और यूपी में प्रभावशाली है, धनखड़ को अपना प्रतिनिधि मानता है। उनके इस्तीफे ने जाटों में असंतोष पैदा किया। खाप पंचायतों ने समर्थन दिया, और किसान नेता राकेश टिकैत ने युवा जाट नेताओं को भाजपा से सावधान रहने की चेतावनी दी। भाजपा ने धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाकर जाट वोट बैंक को साधने की कोशिश की थी, लेकिन यह इस्तीफा उलटा पड़ सकता है।
विपक्ष ने इसे भाजपा की ‘ट्रांजेक्शनल’ राजनीति का उदाहरण बताया – पद देते हैं लेकिन स्वतंत्रता नहीं। न्यायपालिका से टकराव की अफवाहें भी हैं, लेकिन मुख्य मुद्दा किसान नीतियां लगती हैं। फार्म लॉज आंदोलन की यादें अभी ताजा हैं, और धनखड़ का रुख उससे जुड़ा था।
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से जाट समुदाय की प्रतिक्रिया
जाट समुदाय ने धनखड़ के इस्तीफे पर तीखी प्रतिक्रिया दी। आईएनएलडी के अभय चौटाला, जेजेपी के दुष्यंत चौटाला और अन्य ने इसे राष्ट्रीय नुकसान बताया। खाप नेता युधवीर सिंह धनखड़ ने जाट अलगाव की चेतावनी दी, जबकि टेक राम कंडेला ने स्वास्थ्य कारण को बहाना कहा।
रणजीत चौटाला ने समुदाय को आत्मचिंतन की सलाह दी, लेकिन समर्थन भी जताया। यह दिखाता है कि जाट राजनीति विभाजित है, लेकिन धनखड़ के प्रति सहानुभूति है। भाजपा के लिए यह चुनौती है, क्योंकि जाट वोट हरियाणा और राजस्थान में निर्णायक हैं। 2024 लोकसभा चुनावों में भाजपा को जाटों से नुकसान हुआ था, और यह घटना इसे बढ़ा सकती है।
किसान संगठनों ने भी समर्थन दिया। टिकैत का बयान युवा नेताओं को सतर्क करता है कि भाजपा में उम्र के आधार पर साइडलाइन किया जा सकता है। यह भाजपा की जाट रणनीति पर सवाल उठाता है – सत्यपाल मलिक जैसे नेताओं को पहले भी हटाया गया।
जगदीप धनखड़ के वर्तमान स्थिति फार्महाउस में स्थानांतरण
1 सितंबर 2025 को, धनखड़ उपराष्ट्रपति आवास से निकलकर चौटाला के फार्महाउस में शिफ्ट हो रहे हैं। उनका सामान पहले ही भेजा जा चुका है। 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति चुनाव होने हैं, और धनखड़ को आवास खाली करना था। फार्महाउस में रहना उनके पुराने संबंधों का प्रमाण है।
अभय चौटाला ने कहा कि उन्होंने खुद ऑफर किया, क्योंकि धनखड़ अपना आवास तैयार होने तक कहीं रहना चाहते थे। यह कदम राजनीतिक संदेश देता है – धनखड़ विपक्षी खेमे की ओर झुक सकते हैं। लेकिन अभी वे सार्वजनिक रूप से चुप हैं।
राजनीतिक निहितार्थ
यह घटना भाजपा की आंतरिक राजनीति को उजागर करती है। मोदी-शाह की जोड़ी को ‘जी2’ कहा जाता है, और विपक्ष का आरोप है कि वे असहमति बर्दाश्त नहीं करते। धनखड़ का इस्तीफा आरएसएस से संबंधों पर भी सवाल उठाता है। कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि न्यायपालिका से टकराव वजह था, लेकिन मुख्य मुद्दा किसान नीतियां लगती हैं।
हरियाणा में चुनाव नजदीक हैं, और यह भाजपा के लिए नुकसानदेह हो सकता है। जाट वोट बैंक खिसक सकता है। विपक्ष इसे भुना सकता है। धनखड़ का भविष्य क्या होगा? क्या वे सक्रिय राजनीति में लौटेंगे? यह देखना बाकी है।
निष्कर्ष
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा और चौटाला फार्महाउस में रहना भारतीय राजनीति का एक दिलचस्प अध्याय है। यह किसानों के मुद्दों, जातीय राजनीति और सत्ता के खेल को दर्शाता है। स्वास्थ्य कारण सतह पर हैं, लेकिन गहराई में साजिश के आरोप हैं। पाठकों को सलाह है कि विभिन्न स्रोतों से जानकारी लें और निष्कर्ष निकालें। यह घटना लोकतंत्र की मजबूती पर भी सवाल उठाती है।