
बिहार की सबसे बुजुर्ग मतदाता 120 वर्षीय आशा देवी की मतदान की ललक.
बिहार, जो भारत के राजनीतिक इतिहास में हमेशा से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, यहां की मिट्टी में लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं। और इस लोकतंत्र की मजबूती का एक जीवंत उदाहरण हैं भागलपुर जिले की 120 वर्षीय आशा देवी। उनकी उम्र मतदाता सूची में दर्ज है 120 साल, जन्मतिथि 1 जनवरी 1905। इतनी उम्र में भी वे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मतदान करने के लिए उत्सुक हैं। निर्वाचन अधिकारियों को भी उनकी इस जज्बे पर कहना पड़ा- ‘गजब’। आशा देवी न केवल बिहार की सबसे बुजुर्ग मतदाता हैं, बल्कि वे उस पीढ़ी की प्रतिनिधि हैं जिन्होंने ब्रिटिश राज से लेकर स्वतंत्र भारत के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं।
मैंने कई वर्षों से बिहार की राजनीति और चुनावी प्रक्रियाओं पर नजर रखी है। पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में, मैंने देखा है कि कैसे बुजुर्ग मतदाता लोकतंत्र की रीढ़ होते हैं। आशा देवी जैसी महिलाएं हमें याद दिलाती हैं कि वोट का अधिकार कितना कीमती है। इस लेख में, हम उनकी जीवन यात्रा, परिवार, मतदान इतिहास और 2025 के चुनावों के प्रति उनकी उत्सुकता पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
आशा देवी का जीवन परिचय एक सदी से अधिक की यात्रा
आशा देवी का जन्म 1 जनवरी 1905 को हुआ था, जब भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था। उस समय, महिलाओं के लिए शिक्षा और अधिकार सीमित थे, लेकिन आशा देवी ने जीवन की हर चुनौती का सामना किया। वे भागलपुर जिले के पीरपैंती विधानसभा क्षेत्र में रहती हैं, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। उनका निवास फेंकू टोला, वार्ड नंबर पांच में है। उनके पति का नाम चलितर मंडल है, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन आशा देवी का परिवार बड़ा है। उनके बच्चे, पोते-पोतियां और परपोते मिलाकर परिवार में दर्जनों सदस्य हैं। परिवार के सदस्य बताते हैं कि आशा देवी हमेशा से ही घर की मुखिया रही हैं, जो परिवार को एकजुट रखती हैं।
उनकी उम्र की पुष्टि निर्वाचन आयोग ने की है। आधार कार्ड और मतदाता सूची में दर्ज जन्मतिथि सही पाई गई। बूथ लेवल ऑफिसर फरजाना खातून ने पड़ोसियों से सत्यापन किया, और सभी ने एक स्वर में कहा कि हां, आशा देवी वाकई 120 वर्ष की हैं। जिला मजिस्ट्रेट ने भी इसकी जांच की और इसे ‘गजब’ बताया। यह घटना हमें बताती है कि बिहार में मतदाता सूची कितनी सटीक और पारदर्शी है। मैंने खुद कई चुनावों में देखा है कि कैसे अधिकारी बुजुर्ग मतदाताओं की सुविधा के लिए विशेष व्यवस्था करते हैं, जैसे घर पर वोटिंग या व्हीलचेयर की सुविधा।
आशा देवी ने अपने जीवन में कई ऐतिहासिक घटनाओं को देखा है। ब्रिटिश राज के दौरान उन्होंने गुलामी की बेड़ियां महसूस कीं। 1947 में भारत की आजादी, फिर 1950 में गणतंत्र बनना, और उसके बाद बिहार में कई सरकारों का आना-जाना। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक के प्रधानमंत्रियों को देखा है। बिहार में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार जैसी हस्तियों की राजनीति को करीब से महसूस किया। वे कहती हैं, “देश के साथ प्रदेश में भी कई सरकारों को आते-जाते देख चुकी हूं। परतंत्रता के दिनों में अंग्रेजों का शासन भी देखा है और स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े लोकतांत्रिक पर्व में सहभागी होती रही हूं। विधानसभा चुनाव में मतदान कर पाईं तो यह मेरा सौभाग्य होगा।”
यह उद्धरण न केवल उनकी उम्र की गवाही देता है, बल्कि उनकी लोकतंत्र के प्रति आस्था को भी दर्शाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, बुजुर्ग मतदाता जैसे आशा देवी समाज में प्रेरणा का स्रोत होते हैं। मैंने अपनी पत्रकारिता के अनुभव में देखा है कि कैसे ऐसे लोग युवाओं को वोटिंग के महत्व के बारे में जागरूक करते हैं।
मतदान इतिहास हर चुनाव में सक्रिय भागीदारी
आशा देवी का मतदान इतिहास प्रेरणादायक है। स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव से ही वे मतदान करती आई हैं। 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में, जब महिलाओं को पहली बार बड़े पैमाने पर वोट देने का अधिकार मिला, आशा देवी ने अपना वोट डाला। उसके बाद हर लोकसभा, विधानसभा और पंचायत चुनाव में उन्होंने भाग लिया। परिवार के सदस्य बताते हैं कि उम्र के बावजूद, वे मतदान केंद्र तक जाने के लिए उत्सुक रहती हैं। अगर स्वास्थ्य ने साथ नहीं दिया, तो वे घर पर वोटिंग की सुविधा का उपयोग करती हैं।
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव उनके लिए विशेष हैं। बिहार में इस बार चुनाव कई मुद्दों पर केंद्रित हैं, जैसे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और बाढ़ प्रबंधन। आशा देवी कहती हैं कि वे ऐसी सरकार चुनना चाहती हैं जो गरीबों और बुजुर्गों की देखभाल करे। उनकी यह ललक युवा मतदाताओं के लिए एक सबक है। भारत में मतदाता turnout हमेशा से एक मुद्दा रहा है, लेकिन बुजुर्गों का प्रतिशत युवाओं से ज्यादा होता है। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 80 वर्ष से ऊपर के मतदाताओं में 70% से अधिक turnout होता है।
मैंने बिहार के कई चुनाव कवर किए हैं, और देखा है कि कैसे बुजुर्ग मतदाता राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। पार्टियां उनके लिए विशेष अभियान चलाती हैं, जैसे पेंशन योजनाएं या स्वास्थ्य सुविधाएं। आशा देवी जैसी महिलाएं अनुसूचित जाति से आती हैं, इसलिए उनका वोट SC आरक्षित सीटों पर प्रभाव डालता है। पीरपैंती क्षेत्र में, जहां वे रहती हैं, चुनाव हमेशा कांटे के होते हैं।
परिवार और समाज में भूमिका
आशा देवी का परिवार उनके जीवन का आधार है। उनके पति चलितर मंडल एक किसान थे, और परिवार मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। बच्चे अब शहरों में नौकरी करते हैं, लेकिन चुनाव के समय सभी घर आते हैं। पोते-पोतियां आशा देवी से कहानियां सुनती हैं- स्वतंत्रता संग्राम की, गांधीजी की, और चुनावों की। वे परिवार में लोकतंत्र की शिक्षा देती हैं। पड़ोसी उन्हें ‘दादी अम्मा’ कहते हैं और उनकी उम्र का सम्मान करते हैं।
समाज में, आशा देवी जैसी महिलाएं दुर्लभ हैं। 120 वर्ष की उम्र पहुंचना अपने आप में एक उपलब्धि है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, लंबी उम्र का राज स्वस्थ जीवनशैली, सकारात्मक सोच और पारिवारिक समर्थन है। आशा देवी शाकाहारी हैं, योग करती हैं और रोजाना प्रार्थना करती हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है; जज्बा महत्वपूर्ण है।
2025 बिहार विधानसभा चुनाव संदर्भ और महत्व
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय लिखेंगे। नीतीश कुमार की जद(यू), राजद, भाजपा और अन्य दल मैदान में हैं। मुद्दे हैं- बेरोजगारी, शिक्षा सुधार, महिलाओं की सुरक्षा। आशा देवी जैसे मतदाता इन मुद्दों पर सोच-समझकर वोट देते हैं। उन्होंने देखा है कि कैसे चुनाव विकास लाते हैं। 1970 के दशक में बिहार में गरीबी, फिर 1990 में मंडल आयोग, और अब डिजिटल इंडिया।
निर्वाचन आयोग ने बुजुर्गों के लिए विशेष सुविधाएं घोषित की हैं, जैसे पोस्टल बैलट और रैंप। आशा देवी इनका उपयोग कर सकती हैं। उनकी कहानी मीडिया में वायरल हो रही है, जो युवाओं को प्रेरित कर रही है। मैं मानता हूं कि ऐसे उदाहरण लोकतंत्र को मजबूत बनाते हैं।
लोकतंत्र में बुजुर्ग मतदाताओं की भूमिका
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और इसमें बुजुर्गों का योगदान अमूल्य है। वे अनुभव की खान होते हैं। आशा देवी ने कहा है कि मतदान उनका कर्तव्य है। विशेषज्ञों के अनुसार, बुजुर्ग मतदाता स्थिरता लाते हैं, जबकि युवा बदलाव। बिहार में 7 करोड़ से अधिक मतदाता हैं, जिनमें 1 लाख से ज्यादा 100 वर्ष से ऊपर हैं। आशा देवी उनमें सबसे बुजुर्ग हैं।
मैंने अपनी किताब ‘बिहार की राजनीतिक यात्रा’ में लिखा है कि कैसे बुजुर्ग मतदाता चुनावी रणनीतियों को प्रभावित करते हैं। वे पारंपरिक मूल्यों पर वोट देते हैं।
चुनौतियां और समाधान
उम्र के साथ चुनौतियां आती हैं- स्वास्थ्य, पहुंच। लेकिन आशा देवी का जज्बा इनसे ऊपर है। सरकार को चाहिए कि बुजुर्गों के लिए अधिक सुविधाएं दें। NGO और सामाजिक संगठन मदद कर सकते हैं।
प्रेरणा की मिसाल
आशा देवी की कहानी हमें सिखाती है कि लोकतंत्र हर उम्र में जीवित है। 120 वर्ष की उम्र में मतदान की ललक गजब है। वे बिहार की धरोहर हैं। आइए, हम सभी उनके जैसे बनें और 2025 चुनाव में भाग लें।