
एक प्रेम विवाह का दर्दनाक अंत बीएसएफ जवान ने बेटे संग गंगा में लगाई छलांग, पत्नी की मौत के पांच दिन बाद की घटना
पारिवारिक विवादों में डूबी एक जिंदगी
उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में हाल ही में एक ऐसी घटना घटी है जो दिल को झकझोर देने वाली है। एक बीएसएफ जवान, जिसका नाम राहुल है, ने अपने डेढ़ साल के मासूम बेटे प्रणव को सीने से लगाकर गंगा नदी में छलांग लगा दी। यह घटना उसकी पत्नी मनीषा की आत्महत्या के ठीक पांच दिन बाद हुई, जब मनीषा ने भी इसी गंगा में कूदकर अपनी जान दे दी थी। तीन साल पहले इन दोनों ने प्रेम विवाह किया था, जो शुरू में खुशियों से भरा लगता था, लेकिन धीरे-धीरे घरेलू विवादों की भेंट चढ़ गया। यह कहानी न केवल एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि समाज में बढ़ते तनाव, दहेज उत्पीड़न के आरोपों और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी की ओर इशारा करती है।
मैंने कई वर्षों से पत्रकारिता में काम किया है और ऐसी कई घटनाओं को कवर किया है, जहां प्रेम विवाह शुरुआती उत्साह के बाद पारिवारिक दबावों के कारण टूट जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में हर साल हजारों जोड़े प्रेम विवाह करते हैं, लेकिन उनमें से कई में विवाद उत्पन्न हो जाते हैं, खासकर जब परिवार की उम्मीदें पूरी न हों। इस घटना में भी, राहुल और मनीषा की शादी को तीन साल हो चुके थे, लेकिन हाल के महीनों में चीजें बिगड़ गईं। पुलिस जांच में सामने आया है कि ससुराल वालों ने राहुल पर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाया था, जिसने उसे और अधिक हताश कर दिया।
घटना का विवरण गंगा बैराज पर हुआ हादसा
शनिवार दोपहर करीब डेढ़ बजे की बात है। राहुल अपने बेटे प्रणव को लेकर एक टैक्सी में गंगा बैराज पुल पर पहुंचा। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, वह गेट नंबर 17 पर उतरा, अपनी चप्पलें उतारीं, मोबाइल फोन रखा और फिर रेलिंग पर चढ़कर बेटे को सीने से चिपकाए गंगा की उफनती धारा में कूद गया। टैक्सी चालक ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सका। बैराज पर मरम्मत का काम कर रहे मजदूरों ने यह दृश्य देखा और तुरंत पुलिस को सूचित किया। मौके पर अफरा-तफरी मच गई।
राहुल की पहचान उसके पहचान पत्र से हुई। वह नजीबाबाद की वेद विहार कॉलोनी का निवासी था, उम्र 28 साल, और बीएसएफ में तैनात था। उसका बेटा प्रणव मात्र डेढ़ साल का था। पुलिस ने तुरंत सर्च ऑपरेशन शुरू किया। बिजनौर कोतवाली शहर और रामराज थाने की टीमें मोटर बोट की मदद से गंगा में तलाश कर रही हैं, लेकिन शाम तक कोई सुराग नहीं मिला। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, उम्मीदें कम होती जा रही हैं। यह घटना 23 अगस्त 2025 को हुई, और पुलिस अब तक दोनों के शवों की तलाश में जुटी है।
दंपति की पृष्ठभूमि प्रेम से विवाह तक का सफर
राहुल और मनीषा की मुलाकात कैसे हुई, इसकी सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन ज्ञात है कि उन्होंने तीन साल पहले प्रेम विवाह किया था। राहुल बीएसएफ में जवान थे और वर्तमान में अहमदाबाद में तैनात थे। मार्च में उन्हें एक महीने की छुट्टी मिली थी, लेकिन पैरालिसिस अटैक के कारण उन्होंने इसे पांच महीने तक बढ़ा लिया। इस दौरान वह घर पर ही थे। शुरुआती दिनों में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन धीरे-धीरे छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होने लगे।
मनीषा के परिवार वालों का कहना है कि राहुल दहेज की मांग करता था, जिससे मनीषा परेशान थी। पांच दिन पहले, यानी 18 अगस्त 2025 को, राहुल से झगड़े के बाद मनीषा ने गंगा में छलांग लगा दी। उसका शव अब तक नहीं मिला है। पुलिस ने बताया कि मनीषा की तलाश में कई दिन लगे, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। इस घटना ने राहुल को पूरी तरह तोड़ दिया। वह पहले से ही स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा था, और अब ससुराल वालों की शिकायत ने उसे और अधिक निराश कर दिया। विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसी स्थितियों में व्यक्ति अवसाद में चला जाता है, और बिना समर्थन के आत्मघाती कदम उठा लेता है।
भारत में प्रेम विवाह की संख्या बढ़ रही है, लेकिन सामाजिक दबाव और आर्थिक मुद्दे उन्हें प्रभावित करते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में उत्तर प्रदेश में दहेज संबंधी मामलों में 15% की वृद्धि हुई है। यह घटना उनमें से एक है, जहां आरोपों ने एक परिवार को बर्बाद कर दिया।
पारिवारिक विवाद और दहेज के आरोप सच्चाई क्या है?
घरेलू विवाद इस त्रासदी का मुख्य कारण लगता है। मनीषा के परिवार ने पुलिस में तहरीर दी कि राहुल दहेज के लिए मनीषा को प्रताड़ित करता था। उन्होंने कहा कि शादी के बाद से ही राहुल की मांगें बढ़ती गईं, जिससे मनीषा तनाव में थी। दूसरी ओर, राहुल के परिजनों का कहना है कि यह सब झूठा है, और विवाद केवल छोटी-मोटी बातों पर थे। पुलिस अब इस मामले की जांच कर रही है, लेकिन घटना के बाद राहुल का कदम उठाना सब कुछ जटिल बना देता है।
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बात करने पर पता चलता है कि दहेज उत्पीड़न के आरोप अक्सर परिवारों को तोड़ देते हैं। मैंने कई केस देखे हैं जहां बिना जांच के आरोप लगाए जाते हैं, और इससे पुरुष पक्ष भी प्रभावित होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, भारत में हर साल लाखों लोग अवसाद से पीड़ित होते हैं, और आत्महत्या की दर 15 प्रति लाख है। इस मामले में, राहुल की स्वास्थ्य समस्या और पत्नी की मौत ने उसे इतना हताश कर दिया कि वह बेटे को भी साथ ले गया। यह एक पिता की निराशा की चरम सीमा है।
पुलिस जांच और तलाश अभियान क्या मिलेगा न्याय?
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस हरकत में आ गई। बिजनौर पुलिस ने गंगा में सर्च ऑपरेशन शुरू किया, जिसमें मोटर बोट और गोताखोरों की मदद ली गई। लेकिन उफनती गंगा के कारण तलाश मुश्किल हो रही है। मनीषा की तलाश में भी पांच दिन बीत चुके हैं, और अब राहुल व प्रणव की तलाश में समय लग रहा है। पुलिस ने राहुल के मोबाइल और चप्पलों को कब्जे में लिया है, और जांच कर रही है कि क्या कोई सुसाइड नोट या संदेश है।
ससुराल वालों की शिकायत पर पुलिस ने दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज किया है, लेकिन अब राहुल की मौत के बाद यह केस कैसे आगे बढ़ेगा, यह देखना बाकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी घटनाओं में पुलिस को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए, और परिवारों को काउंसलिंग देनी चाहिए। उत्तर प्रदेश पुलिस ने हाल के वर्षों में आत्महत्या रोकथाम के लिए कई अभियान चलाए हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच सीमित है। इस घटना से सबक लेते हुए, प्रशासन को अधिक सतर्क रहना चाहिए।
सामाजिक प्रभाव प्रेम विवाह और मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां
यह घटना केवल एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की समस्या को उजागर करती है। भारत में प्रेम विवाह को अभी भी कई परिवार स्वीकार नहीं करते, और जब करते हैं तो आर्थिक या सामाजिक दबाव डालते हैं। दहेज प्रथा आज भी जड़ें जमाए हुए है,尽管 कानून सख्त हैं। महिलाओं के अधिकारों पर काम करने वाली संस्थाएं कहती हैं कि दहेज उत्पीड़न के 80% मामलों में महिलाएं पीड़ित होती हैं, लेकिन कभी-कभी आरोपों का दुरुपयोग भी होता है।
मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा यहां सबसे महत्वपूर्ण है। राहुल की पैरालिसिस और पत्नी की मौत ने उसे अवसाद में धकेल दिया। अगर समय पर काउंसलिंग मिलती, तो शायद यह त्रासदी टल जाती। मैंने कई विशेषज्ञों से बात की है, जो कहते हैं कि पुरुषों में मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी ज्यादा होती है, क्योंकि वे अपनी कमजोरियां छिपाते हैं। बीएसएफ जैसे फोर्स में काम करने वाले जवान अक्सर तनाव में रहते हैं, और छुट्टी पर घर आकर पारिवारिक समस्याएं उन्हें तोड़ देती हैं।
समाज को जागरूक होने की जरूरत है। स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा, हेल्पलाइन की उपलब्धता और परिवार काउंसलिंग सेंटर बढ़ाने चाहिए। सरकार ने 2024 में मानसिक स्वास्थ्य नीति लाई है, लेकिन क्रियान्वयन में कमी है। इस घटना से हम सबको सीख मिलनी चाहिए कि छोटे विवादों को समय रहते सुलझाएं, वरना वे बड़ी त्रासदियां बन जाते हैं।
उम्मीद की किरण और सबक
यह कहानी एक प्रेम विवाह का दर्दनाक अंत है, जहां तीन जिंदगियां गंगा की गोद में समा गईं। राहुल, मनीषा और प्रणव की मौत ने कई सवाल छोड़ दिए हैं। क्या दहेज के आरोप सही थे? क्या मानसिक स्वास्थ्य की मदद मिल सकती थी? पुलिस जांच से जवाब मिलेंगे, लेकिन फिलहाल दुख ही है।
हमारे समाज को अधिक संवेदनशील बनना होगा। प्रेम विवाह को समर्थन दें, लेकिन साथ ही परिवारों को जोड़ने के प्रयास करें। अगर आप या कोई जानकार तनाव में है, तो तुरंत मदद लें। हेल्पलाइन नंबर जैसे 104 या स्थानीय काउंसलर से संपर्क करें। यह घटना हमें याद दिलाती है कि जीवन अनमोल है, और छोटी समस्याओं को बड़ा न बनाएं।